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अलाउद्दीन खिलजी ने भारत को बचाया था।

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भारतीय इतिहास का सबसे ताक़तवर शासक अलाउद्दीन खिलजी, बड़ी दिलचस्प है इनकी दास्तान अलाउद्दीन खिलजी का इतिहास बड़ा ही दिलचस्प रहा है अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली के सुल्तान थे और वह खिलजी वंश के संस्थापक जलालुद्दीन खिलजी के भतीजे और दामाद थे इतिहासकारों के अनुसार यह माना जाता है अलाउद्दीन खिलजी खिलजी साम्राज्य का सबसे अधिक शक्तिशाली शासक रहा था.और उसने सुल्तान बनने के पहले इलाहाबाद के पास खड़ा नाम की जागीर दी गई थी जिसे उन्होंने संभाला था और अलाउद्दीन खिलजी के बचपन का नाम गुरु शासक था अलाउद्दीन खिलजी के तख्त पर बैठने के बाद अमीरे उन्हें अमीर ए तुजुक से भी नवाजा गया.दुनियाँ की बड़ी बड़ी सल्तनत जब मंगोलो के ख़ौफ़ से थर थर कांप रही थी, तब उस वक़्त हिन्दुस्तान में एक ऐसा बहादुर और दिलेर शहंशाह हुकुमत कर रहा था जिनसे मंगोलो को एक बार नही बल्के पांच बार युद्ध में शिकस्त दिया.बुरी तरह हार का सामना कर रहे मंगोलो मे अलाउद्दीन ख़िलजी के नाम का ख़ौफ़ तारी हो गया था. अलाउद्दीन ख़िलजी दुनिया के ऐसे चंद शासकों में भी शामिल थे जिन्होंने मंगोल आक्रमणों को नाकाम किया और अपने राज्य की रक्षा की. उन्हों...

मूसा बिन नसीर

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पूरा नाम : मूसा बिन नसीर पैदाइश  :  640 ईसवी मुकाम पैदाइश : सीरिया  मौत :   716  ईस्वी दमिश्क  शहरियत : खिलाफत उमवी  पेशा    :  फौजी क़ायद, गवर्नर मूसा बिन नसीर का आबाई खानदान मसीही था और ऐन अल तमर के इलाके में रहता था शाम (सीरिया) ईरान के सरहद पर मौजूद है  यह शहर जो अहम कारोबारी शहर है खालिद बिन वलीद रजिअल्लाहो अन्हो ने जब अल तमर शहर फतह किया तो मूसा के वालिद नसीर को गिरफ्तार करके मदीना भेज दिया  दस्तूर के मुताबिक वह गुलाम थे लेकिन इस्लाम कबूल करने के बाद उनके मालिक अब्दुल अजीज बिन मरवान ने आजाद करके अपना दोस्त बना लिया. मूसा की पैदाइश दौरे फारुकी 19 हिज़री में हुई आप की तालीम और तबीयत उसी माहौल में हुई जिसमें उमर बिन अब्दुल अजीज मुजद्दीद अल्फ अव्वल परवरिश पा रहे थे  अब्दुल मलिक ने मूसा को बसरा में खिराज वसूल करने का अफसर मुकर्रर किया लेकिन जल्द ही मूसा पर बददियानती का इल्जाम लगा जिसके बाद आप अपने मुरब्बी अब्दुल अजीज की सिफारिश पर सजा से बच गए. अब्दुल अजीज ने मूसा पर लगे हुए जुर्माने की रकम अपनी जेब से अदा ...

सलाहुद्दीन अय्यूबी

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"मुसलमानों की एक नस्ल ऐसी आयेगी जिनके पास नारा रह जाएगा "#इस्लाम_ज़िंदाबाद" वो नस्ल अपनी तारीख से आगाह ना होंगी, उस नस्ल को ये बताने वाला कोई न होगा कि, इस्लाम के पासबान और अलम्बरदार वो थे जो वतन से दूर रेगिस्तानों में, पहाड़ो में, वादियों में, अज़नबी मुल्कों में जाकर लड़े, वो दरिया और समन्द्र फलाँग गए उन्हें कड़कती बिजलियाँ, आँधियाँ और ओलो के तूफान भी न रोक सके, वो उन मुल्कों में लड़े जहाँ के पत्थर भी उनके दुश्मन थे, वो भूखें लड़े, प्यासे लड़े, हथियारों और घोड़ो के बगैर भी लड़े वो ज़ख़्मी हुए तो किसी ने उनके ज़ख्मों पर मरहम न रखा वो शहीद हुए तो उनके ऱफीको को उनके लिए कब्र खोदने की भी मोहलत न मिली, वो खून बहाते गए, अपना भी और दुश्मन का भी।"  ~#सुल्तान_सलाहुद्दीन_अय्यूबी नोट फ़ोटो एक काल्पनिक है इसे सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी का कोई तलूक नहीं है

मुसलमानों का भारत की आजादी में योगदान

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भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आज़ादी दिलाने में अनगिनत मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान की कुर्बानी दी लेकिन जब भी स्वतंत्रता आंदोलन की बात होती है, सिर्फ एक ही नाम सामने आते हैं। उस नाम से आप भली-भांति वाकिफ हैं। जी हां, वह और कोई नहीं बल्कि ‘अशफाक उल्लाह खान’ हैं। मुद्दा यह है कि क्या सिर्फ ‘अशफाक उल्लाह खान’ ही भारत के स्वतंत्रा आंदोलन में शामिल थे? अगर गहन अध्यन किया जाए तब आप देखेंगे कि 1498 की शुरुआत से लेकर 1947 तक मुसलमानों ने विदेशी आक्रमणकारियों से जंग लड़ते हुए ना सिर्फ शहीद हुए बल्कि बहुत कुछ कुर्बान कर दिया। फतवा राष्ट्रप्रेम का ‘मौलाना हुसैन अहमद मदनी’ ने अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ फतवा दिया कि अंग्रेज़ों की फौज में भर्ती होना हराम है। अंग्रेज़ी हुकूमत ने मौलाना के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया। सुनवाई में अंग्रेज़ जज ने पूछा, “क्या आपने फतवा दिया है कि अंग्रेज़ी फौज में भर्ती होना हराम है?” मौलाना ने जवाब दिया, ‘हां फतवा दिया है और सुनो, यही फतवा इस अदालत में अभी दे रहा हूं और याद रखो आगे भी ज़िन्दगी भर यही फतवा देता रहूंगा।’ इस पर जज ने कहा, “मौलान...

When Was The Bible Written

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#History_of_Bible_Writings Bible has been written and re-written several times over a period of many centuries. (This information has been derived from the books and encyclopedias). 🌼 3300 years ago the absolute original Torah must have been in Hebrew language which is a sister language of Arabic. But it was reduced to writing some 200 years after Moses. 🌼 2000 years ago the absolute original Gospel must have been in Aramaic language which was also sister language of Arabic. But it was reduced to writing some forty to eighty years after Jesus. 🌼 200 years after Moses, the Torah was first reduced to writing. In it were included the Ten Commandments, Songs, some prophetic sayings of Prophet Jacob and Moses and some legislative religious text. 🌼 Then Royal Jewish writers kept on adding. 🌼 300 years after Moses, YAHVISTIC version of Bible appeared. 🌼 350 years after Moses ELOHISTIC version of Bible appeared. 🌼 500 years after Moses the Books of Amos, Hosea Michah and Deu...

बदशगुनी? उल्लू या किसी महीने का मनहूस होना?

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बदशगुनी की कोई हक़ीक़त नही...सब बेकार ख्याल है ✦ अबू हुरैरा रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की नबी करीम सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ..छुत लग जाना, बदशगुनी या उल्लू का बोलना या सफ़र (के महीने ) की नहूसत होना ये कोई चीज़ नही है (बेकार ख़याल है) सही बुखारी, जिल्द 7, 5757 ✦ अनस  रदी अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की नबी करीम सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया..छुत लग जाने की कोई हकीकत नहीं और ना ही बदशुगनि की कोई हकीकत है और मुझे अच्छे अमल पसंद है यानि कोई नेक बात जो किसी के मुंह से सुनी  जाए* सही बुखारी, जिल्द 7, 5756 ✦ इब्न अब्बास रदी अल्लाहू अन्हुमा से रिवायत है की नबी करीम सलअल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मेरी उम्मत के 70,000 लोग बिना हिसाब के जन्नत में जाएँगे ये वो लोग होंगे जो झाड़-फूँक नही करते हैं और ना शगुन लेते हैं और अपने रब ही पर भरोसा रखते हैं।  सही बुखारी, जिल्द 7, 6472 ----------------- Youtube Channel:-  Click Here

क्या कुरान शरीफ की तिलावत करना काफी है

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(2) #प्रश्न:- क्या क़ुरआन की तिलावत(पढ़ना) काफ़ी है या हमें इसे समझकर इस पर ग़ौर भी करना चाहिए? #उत्तर:- यह एक किताब है जो हमने तुम्हारे ऊपर उतारी है ताकि वे इसकी आयतों पर सोच विचार करें ताकि बुद्धि और समझ वाले इससे शिक्षा ग्रहण करें. (क़ुरआन, 38/29)   Buy Hindi Quran On Amazon - पवित्र कुरान खरीदें