जिहाद क्या क्यों कैसे?
मीडिया और इस्लाम विरोधियों द्वारा पिछले 30 वर्षों से इस्लाम को बदनाम करने के लिए यह प्रोपेगेंडा चलाया जा रहा है कि इस्लाम आतंकवाद फैलाता है। गैर मुस्लिम और जो इस्लाम को नहीं मानता उसको कत्ल करने की इजाजत देता है। कुरान की कुछ आयतों को तोड़ मरोड़ कर वह इस तरह से कुरान को बदनाम करते हैं।
जिहाद के बारे में जानने से पहले पवित्र कुरआन की इन आयतो को देखें:-
जिन लोगों ने तुमसे धर्म के बारे में युद्ध नहीं किया, और तुम्हें देश (व घरों) से नहीं निकाला। उनके साथ अच्छा बर्ताव और न्याय करने से अल्लाह (ईश्वर) तुम्हें नहीं रोकता। बल्कि अल्लाह तो न्याय करने वालों से प्रेम करता है। _पवित्र क़ुरान 60:8
अल्लाह (ईश्वर) तुम्हें मात्र उन लोगों की मोहब्बत से रोकता है, जिन्होंने तुमसे धर्म के बारे में युद्ध किया और तुम्हें तुम्हारे देश (व घरों) से निकाला और देश से निकालने वालों की सहायता की। जो लोग ऐसे काफिरों से प्रेम करें वही लोग अत्याचारी हैं। _पवित्र कुरआन 60:9
इस्लाम में किसी बेगुनाह का कत्ल करना बहुत बड़ा पाप है:-
जो व्यक्ति किसी की हत्या करें बिना इसके कि उसने किसी की हत्या की हो या पृथ्वी पर उपद्रव किया हो तो ऐसा है जैसा उसने सारी मानवता की हत्या कर डाली और जिसने एक जान को बचा लिया उसने सारी मानवता को बचा लिया। _पवित्र कुरान 5:32
इस्लाम में युद्ध केवल आत्मरक्षा के लिए वैध है:-
जो लोग तुमसे लड़ते हैं तुम भी अल्लाह (ईश्वर) की राह में उनसे लड़ो, मगर अत्याचार ना करना । अल्लाह (ईश्वर) अत्याचार करने वालों से प्रेम नहीं रखता। पवित्र कुरान 2:190
जो लोग अल्लाह (ईश्वर) की आयतों को नहीं मानते और पैगंबरों की हत्या करते हैं। और जो इंसाफ करने का हुक्म देते हैं, उन्हें भी मार डालते हैं। उनको दुख देने वाले अज़ाब की खुशखबरी सुना दो । --पवित्र क़ुरआन 3: 21
जिन मुसलमानों से (बेवजह) लड़ाई की जाती है, उनको इजाजत है कि वह भी लड़े क्योंकि उनके ऊपर अत्याचार हो रहा है। और अल्लाह (ईश्वर) उनकी मदद करेगा बेशक वह उनकी मदद पर कुदरत रखता है। पवित्र कुरान 22:39
और जो लोग खुदा और उसके रसूल से लड़ाई करें और मुल्क (देश) में फसाद (दंगा) करने को दौड़ते फिरे। उनकी सजा यह है कि कत्ल कर दिया जाए या सूली पर चढ़ा दिया जाए। या उनके एक एक तरफ के हाथ और एक एक तरफ के पांव काट दिए जाएं। यह तो दुनिया में उनकी रुसवाई है और आखिरत (परलोक) में उनके लिए बड़ा भारी अज़ाब तैयार है,
हां जिन लोगों ने इससे पहले कि तुम्हारे काबू आ जाएं, तोबा (प्रयाश्चित) कर ली तो याद रखो कि खुदा बख्श ने वाला मेहरबान है।पवित्र कुरान सूरा 5 आयत 33 34
और ए मोहम्मद! उस वक्त को याद करो! जब काफिर लोग तुम्हारे बारे में चाल चल रहे थे कि तुम को कैद कर दें या जान से मार डाले या देश से निकाल दें। तो इधर से वह चाल चल रहे थे और उधर से खुदा चाल चल रहा था और खुदा सबसे बेहतर चाल चलने वाला है। पवित्र कुरान 8:30
ए नबी! काफिरों से कह दो कि अगर वह अपने कर्मों से बाज आ जाएं तो जो हो चुका , वह उन्हें माफ कर देगा। और अगर फिर भी वही हरकतें करने लगेंगे तो अगले लोगों का जो तरीका जारी हो चुका है वहीं उनके हक में बरता जाएगा। पवित्र कुरान 8:38
इस्लाम देश में फसाद करने की इजाज़त नही देता:-
लोगों को उनकी चीजें कम ना दिया करो और मुल्क में फसाद ना करते फिरो!
कुरान सूरा 26 आयत 183
किसी को जबरदस्ती इस्लाम कबूल नहीं करवाया जा सकता:-
दीन ए इस्लाम में जबरदस्ती नहीं!
कुरान सूरा 9 आयत 256
और अगर तुम्हारा परवरदिगार (यानी अल्लाह) चाहता तो जितने लोग जमीन पर है सब के सब इमान ले आते। तो क्या तुम लोगों पर जबरदस्ती करना चाहते हो कि वह मोमिन (मुसलमान ) हो जाए
कुरान सूरा 10 आयत 99
ए पैग़म्बर! इन काफिरों से कह दो जिन मूर्तियों को तुम पूजते हो, उसको मैं नहीं पूजता और जिस (ईश्वर) की मैं पूजा करता हूं, उसकी तुम पूजा नहीं करते। (और फिर कहता हूं) कि जिसकी तुम पूजा करते हो उनकी मैं पूजा करने वाला नहीं हूं। और ना तुम उसकी बंदगी करने वाले हो जिसकी मैं बंदगी करता हूं । तुम अपने धर्म पर मैं अपने धर्म पर।
कुरान सूरा 109 आयत 106
कुछ लोग कुरान की आयतों को तोड़ मरोड़ कर इस्लाम को बदनाम करते हैं जैसे कि:-
पैगंबर हजरत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के कुछ वचन:-
हज़रत अनस - बिन - मालिक कहते हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर का कथन है , “ अपने भाई की मदद करो चाहे वह ज़ालिम हो या मज़लूम ।
"[ आपसे ] अर्ज़ किया गया , “ ऐ अल्लाह के पैग़म्बर ! मज़लूम होने पर तो हम उसकी मदद कर सकते हैं , ज़ालिम होने के वक़्त किस तरह मदद करें ? "
पैग़म्बर ने फ़रमाया , “ उसके हाथ पकड़ लो
( जुल्म न करने दो ) । "
( बुख़ारी शरीफ़ , हदीस -1046 )
हज़रत जरीर - बिन - अब्दुल्लाह कहते हैं कि
हज़रत मुहम्मद ( सल्ल . ) ने फ़रमाया कि “ जो शख्स रहम [ यानी दया ] नहीं करता है , उसपर रहम नहीं किया जाता । " ( बुख़ारी शरीफ़ , हदीस -1674 )
हज़रत अनस - बिन - मालिक कहते हैं कि हज़रत मुहम्मद न तो बे - हया थे , न गाली देनेवाले , न किसी पर लानत करनेवाले , बल्कि अगर आपको किसी पर गुस्सा आ जाता , तो यों फ़रमाते कि “ ऐ क्या हो गया ! उसके सर पर ख़ाक ! "
( बुख़ारी शरीफ़ , हदीस -1681 )
हज़रत इब्ने - अब्बास कहते हैं कि
अल्लाह के पैग़म्बर ( सल्ल . ) ने फ़रमाया ,
“ सभी जानदारों में अल्लाह तआला को तीन शख्स बुरे मालूम होते हैं-
मुल्के - हरम में जुल्म करनेवाला , दूसरा इस्लाम में जाहिलियत का तरीक़ा इख़्तियार करनेवाला , तीसरा नाहक खून का चाहने वाला ।
" ( बुख़ारी शरीफ़ , हदीस -1697 )
हज़रत अबू - हुरैरा कहते हैं कि
अल्लाह के पैग़म्बर ( सल्ल . ) ने फ़रमाया कि
“ जल्द ही तुमको अमारत [ नेतृत्व पद प्राप्त करने ] की लालच होगी ,
लेकिन वह क़ियामत के दिन पछताने का ज़रीआ होगा ,
उसकी शुरुआत तो अच्छी मालूम होगी , लेकिन अंजाम बुरा होगा । "
( बुख़ारी शरीफ़ , हदीस -1725 )
हज़रत माक़ल - बिन - यसार कहते हैं कि
अल्लाह के पैग़म्बर ( सल्ल . ) ने फ़रमाया ,
“ जो हाकिम अपनी रिआया [ यानी जनता ] का बुरा चाहनेवाला होकर मर जाएगा ,
तो अल्लाह तआला उसपर जन्नत हराम कर देगा।
" ( बुख़ारी शरीफ़ , हदीस -1727 )
हज़रत अबू - बक्र कहते हैं कि
अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद ( सल्ल . ) ने फ़रमाया कि
“ हाकिम को चाहिए कि गुस्से की हालत में किसी का फ़ैसला न करे ।
( बुख़ारी शरीफ़ , हदीस -1729 )
हज़रत आइशा ( रजि . ) फ़रमाती हैं कि अल्लाह के पैग़म्बर ( सल्ल . ) का इर्शाद है कि
“ अल्लाह तआला के नज़दीक सबसे ज़्यादा बुरा आदमी वह है जो हमेशा लड़ता - झगड़ता रहता है । "
( बुख़ारी शरीफ़ , हदीस -1730 )
हज़रत अब्दुल्लाह ( रजि . ) कहते हैं कि
अल्लाह के पैग़म्बर ( सल्ल . ) ने फ़रमाया कि “
जब तुम तीन आदमी हो , तो दो आदमी आपस में कानाफूसी न करें , जब तक ( एक ) साथ न हो जाएँ ,
क्योंकि यह कानाफूसी तीसरे को दुखी बनाती है । "
( बुख़ारी शरीफ़ , हदीस -1737 )
इस्लाम और आतंकवाद और जिहाद के बारे में सुनिए स्वामी लक्ष्मी नारायण शंकराचार्य जी से:-
एक जिहाद शुरू हो जाता है इन्सान और उसके नफ्स के बीच. यह भी एक जिहाद है….
जब एक मुसलमान किसी गुनाह की तरफ या बुराई के तरफ अमादा होता है तो उनके दिल से एक आवाज़ आती है देखो तुम ग़लत कर रहे हो | यह आवाज़ बलात्कारी के पास भी आती है, चोर के पास भी आती है और ज़ालिम के पास भी आती है | इस अंतरात्मा की आवाज़ को सुन के गुनाह से खु को रोक लेना भी एक जिहाद है |
समाज मैं जब बुराई बढ़ जाती है और नेकी कम हो जाती है तो भी जिहाद किया जाता है कलम के ज़रिये ,अपने लेखों के ज़रिये, समाज में ,शांति स्थापित करने और बुराइयाँ दूर करने के लिए. यह भी अल्लाह की इबादत का एक रूप है और यह कुरआन और मुहम्मद (स.अव.) की नसीहतों और हिदायतों ज़रिये ही किया जा सकता है।
इस्लाम हमें बताता है कि मुसलमानों को पहले अपने स्वयं के भीतर की बुराइयों के खिलाफ जिहाद करना चाहिए, हमारे बुरी आदतों के खिलाफ , झूठ बोलने की आदत के खिलाफ,फितना ओ फसाद फैलाने की आदत के खिलाफ, जलन, द्वेष, नफरत के खिलाफ ,
इस जिहाद को स्वयं के खिलाफ संघर्ष कहा जाता है।
यह जिहाद का जिक्र गीता में कुछ ऐसे किया गया है:
शत्रौ मित्रे पुत्रे बन्धौ, मा कुरु यत्नं विग्रहसन्धौ।
सर्वस्मिन्नपि पश्यात्मानं, सर्वत्रोत्सृज भेदाज्ञानम् ॥२५॥
भावार्थ : शत्रु, मित्र, पुत्र, बन्धु-बांधवों से प्रेम और द्वेष मत करो, सबमें अपने आप को ही देखो, इस प्रकार सर्वत्र ही भेद रूपी अज्ञान को त्याग दो ॥२५॥
कामं क्रोधं लोभं मोहं, त्यक्त्वाऽत्मानं भावय कोऽहम्।
आत्मज्ञान विहीना मूढाः, ते पच्यन्ते नरकनिगूढाः ॥२६॥
भावार्थ : काम, क्रोध, लोभ, मोह को छोड़ कर, स्वयं में स्थित होकर विचार करो कि मैं कौन हूँ, जो आत्म- ज्ञान से रहित मोहित व्यक्ति हैं वो बार-बार छिपे हुए इस संसार रूपी नरक में पड़ते हैं ॥२६॥
अपनी मेहनत की कमाई से अनाथों और विधवाओं और गरीबों की सहायता करना भी एक जिहाद है । इस इबादत का दर्जा बहुत ऊंचा है।
और सबसे आखिरी जिहाद है हथियार का, यह जिहाद केवल रक्षात्मक ही हो सकता है। या यह कह लें की सिर्फ बचाव मैं ही हथियार उठाया जा सकता है, सामने से हमला करना जिहाद नहीं…अपने बचाव मैं किये जिहाद का भी कानून है. बच्चों , औरतों और बूढ़े, जो आपको नुकसान नहीं पहुंचा रहे, उनको कुछ ना कहो, नुकसान ना पहुँचाओ, अगर कोई अमन की आवाज़ बलंद करे तो उसे भी जाने दो। दुश्मन अगर पीठ दिखा जाए तो भी उसपे हमला मना है. यह जिहाद भी सिर्फ अल्लाह की राह मैं उसके दीन को बचाने के लिए किया जा सकता है।
अगर इस्लाम पे कोई हमला करे तो उसको बचाने का काम हथियार से होता है, जो की केवल रक्षात्मक ही हो सकता है और इस्लाम फैलाने का काम , कलम से, खुतबे से , अच्छा किरदार पेश करने से, और इन्साफ करने से होता है. इस्लाम मैं जब्र नहीं और इस्लाम को फैलाने के लिए ज़बरदस्ती मना है.
कुरआन 2:256:- दीन (के स्वीकार करने) में कोई ज़बर्दस्ती नहीं है.
कुरान ५:३२ मैं कहा गया है की अगर किसी ने एक बेगुनाह इंसान की जान ली तो यह ऐसा हुआ जैसे पूरे इंसानियत का क़त्ल किया और अगर किसी ने एक इंसान की जान बचाई तो उसने पूरी इंसानियत की जान बचाई.
२: १९० . जो तुम से लड़े, तुम भी उनसे अल्लाह की राह में जंग करो, परन्तु हद से न बढ़ो (क्योंकि) अल्लाह हद से बढ़ने वालों से प्रेम नहीं करता। २: १९२ . अगर वह अपने हाथ को रोक लें तो अल्लाह बड़ा क्षमा करने वाला और दयावान है।
जब इस्लाम इस रक्षात्मक जिहाद मैं इतनी शर्तें लगा सकता है तो यह इंसानों की जान लेने जैसी हरकतों को कैसे सही ठहरा सकता है, जिसमें यह भी नहीं पता होता की मरने वाला, बच्चा है, की औरत, बूढा है या , जवान, गुनाहगार है या बेगुनाह ?
इस्लाम ने उन लोगों को दो चेहरे वाला (मुनाफ़िक़) कहा है जो इस्लाम का नाम ले के कुरान की हिदायत के खिलाफ कोई भी काम अंजाम देते हैं. कुरआन में कहा गया है की (मुनाफ़िक़ यह समझते हैं कि) वह अल्लाह व मोमिनों को धोका दे रहे हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि वह स्वयं को धोका देते हैं, लेकिन वह इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं।
की बेहतरीन मिसाल आप को वाक़ए कर्बला मैं देखने को मिलेगी और यहीं पे जिहाद और युद्ध या आतंकवाद का फर्क भी देखने को मिलेगा. इमाम हुसैन (अ) का आन्दोलन मानव इतिहास की एक अमर घटजिहाद ना है। सन 61 हिजरी में दसवीं मोहर्रम को जो कुछ कर्बला की धरती पर हुआ, वह केवल एक असमान युद्ध और एक दुख भरी कहानी नहीं थी । ये घटना सदगुणों के सम्मुख अवगुणों और भले लोगों से अत्याचारियों का युद्ध थी ।
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